भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर (आईसीएआर-आरसीईआर) की उत्पत्ति पूर्ववर्ती जल प्रबंधन अनुसंधान निदेशालय (डीडब्ल्यूएमआर) से हुई है। यह वर्ष 2001 में डीडब्ल्यूएमआर, पटना; केंद्रीय बागवानी परीक्षण केंद्र, रांची और केंद्रीय तंबाकू अनुसंधान केंद्र, पूसा, समस्तीपुर को मिलाकर आस्तित्व में आया। राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा को भी दिसंबर 2003 में आईसीएआर-आरसीईआर के वित्तीय एवं प्रशासनिक नियंत्रण में इसके एक केंद्र के रूप में शामिल किया गया। उपर्युक्त इकाइयों और नए कार्यक्रमों के सृजन के बाद इस संस्थान में पांच नए कार्यक्रम जैसे भूमि, जल, पर्यावरण और इंजीनियरिंग अनुसंधान कार्यक्रमों (एलडब्ल्यूईईआरपी), पटना; फसल अनुसंधान कार्यक्रम (सीआरपी), पूसा; बागवानी और कृषि-वानिकी अनुसंधान कार्यक्रम (एचएआरपी), रांची; पशुधन और मात्स्यिकी सुधार एवं प्रबंधन कार्यक्रम (एलएफआईएमपी), पटना; तथा सामाजिक-आर्थिक एवं प्रसार अनुसंधान कार्यक्रम (एसईईआरपी), पटना सम्मिलित किए गए।
वर्तमान में, आईसीएआर-आरसीईआर के मुख्यालय, पटना में चार प्रभाग- भूमि एवं जल प्रबंधन प्रभाग (डीएलडब्ल्यूएम), फसल अनुसंधान प्रभाग (डीसीआर), पशुधन और मत्स्य प्रबंधन प्रभाग (डीएलएफएम) तथा सामाजिक – आर्थिक एवं प्रसार प्रभाग संस्थापित हैं इसके अतिरिक्त रांची में बागवानी और कृषि वानिकी पर अनुसंधान केंद्र और दरभंगा में मखाना पर अनुसंधान केंद्र, शोध कार्य का संचालन कर रहा है। 11वीं योजना के दौरान बक्सर में एक केवीके भी स्थापित किया गया है।
अधिदेश
- पूर्वी क्षेत्र में कृषि उत्पादन प्रणालियों की उत्पादकता में वृद्धि के लिए प्राकृतिक संसाधनों के कुशल समेकित प्रबंधन हेतु नीतिगत और अनुकूल अनुसंधान का संचालन।
- खाद्य, पोषणिक और आजीविका सुरक्षा के लिए कम उत्पादकता-उच्च क्षमता वाले पूर्वी क्षेत्र का उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्र में रूपांतरण।
- मौसमी तौर पर जलमग्न तथा सदाबहार जल निकायों के जल का विविध उद्देश्यों के लिए उपयोग।
- पूर्वी क्षेत्र में नेटवर्क और संकाय (कंशोर्सिया) अनुसंधान को आगे बढ़ाना।
मिशन
- पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ, सामाजिक स्वीकार्यता और आर्थिक लाभप्रदता के साथ खाद्य, पोषणिक और आजीविका सुरक्षा के लिए कम उत्पादकता-उच्च क्षमता वाले पूर्वी क्षेत्र का उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्र में रूपांतरण।
- रोजगार सृजन क्रियाकलापों के माध्यम से गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण के अलावा जल एवं जलकृषि फसलों के लिए मौसमी जलाक्रांत और स्थायी जल निकायों का व्यापक उपयोग करना।
- पूर्वी क्षेत्र में नेटवर्क और संकाय (कंशोर्सिया) अनुसंधान को आगे बढ़ाना।
केंद्र बिंदु (फोकस)
पूर्वी क्षेत्र में कृषि विकास की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप कम लागत, कुशल और टिकाऊ तकनीकों को नया रूप देने और विकसित करने के लिए यह संस्थान समर्पित है। संस्थान के विभिन्न अनुसंधान कार्यक्रमों का क्षेत्राधिकार पूर्वी भारत के सभी 7 राज्यों में फैला है। इसलिए, यहां के छह अलग-अलग कृषि-पारिस्थितिक आर्थिक क्षेत्र (AEZ) को उच्च उत्पादक क्षेत्र में बदलने के लिए इस विशाल उच्च क्षमता पर कम उत्पादक क्षेत्र को समर्थ बनाने के लिए उपयुक्त और वहनीय तकनीकों का विकास किया जाएगा। संक्षेप में, यह परिसर निम्नलिखित मुख्य क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगा:
- आईसीएआर संस्थानों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य एजेंसियों से जुड़े नेटवर्क /कंसोर्टिया दृष्टिकोण के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी उपयोग द्वारा स्थान-विशिष्ट कृषि उत्पादन प्रौद्योगिकियों के सृजन हेतु उपयुक्त कृषि प्रौद्योगिकियों के प्रसार एवं समन्वय हेतु सुविधा देना और उसे आगे बढ़ाना ।
- वैज्ञानिक नेतृत्व प्रदान करना और कृषि उत्पादन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए उन्नत प्रशिक्षण के साथ-साथ व्यावसायिक केंद्र के रूप में कार्य करना।
- उपलब्ध जानकारी के भंडार के रूप में कार्य करना तथा कृषि उत्पादन प्रणालियों के सभी पहलुओं का प्रसार करना।
- प्रौद्योगिकी प्रसार के लिए राज्य और केंद्र सरकार के विभागों के संपर्क में रहकर प्रासंगिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग करना।
- कृषि, बागवानी, पशुधन और जलीय कृषि को बढ़ावा देने के लिए जरूरी परामर्श और सलाहकार सहायता प्रदान करना।
- कृषि प्रौद्योगिकियों का सामाजिक-आर्थिक और उनके प्रभाव का मूल्यांकन।